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संसार के प्रमुख धर्म और उनकी ईश्वर के बारे में धारणा। हिन्दूधर्म, बौद्धधर्म, इस्लाम, ईसाईधर्म और नया युग ( न्यु एरा )

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मेरिलिन एडमसन द्वारा

यह सोचते हुए कि हमने सब कुछ सही किया, हम सभी सफलता के साथ जीवन जीना चाहते हैं। संसार के महान धर्मों का क्या? क्या उनमें कुछ ऐसा है जो हमारे जीवन को ज्यादा गहराई और दिशा दे सकता है?

हम संसार के कुछ महान धर्मों की तरफ देखते हैं ----- हिन्दूधर्म, बौद्धधर्म, इस्लाम, ईसाईधर्म और नया युग ( न्यु एरा )। सबके विषय में यहाँ एक लघु विवरण दिया गया है। ईश्वर के विषय में उनका दृष्टिकोण, मनुष्य धर्म के द्वारा क्या पा सकता है आदि। अंत में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार ईसा का शिक्षण प्रमुख धर्मों से अलग है।

हर धर्म के अपने – अपने संप्रदाय हैं जो अलग – अलग विश्वासों पर आधारित हैं। यहाँ पर इनका जो विवरण दिय़ा गया है वह हर धर्म की मूल धारणा पर ध्यान केंद्रित करता है। अन्य प्रमुख धर्म जूदाईस्म पर चर्चा की जा सकती है पर संक्षिप्तता के लिए हमने इन धर्मों का चुनाव किया है।

हिन्दू धर्म और उसकी धारणा

अधिकांश हिन्दू, परमेश्वर और देवी के अनंत निरूपण के माध्यम से परम एकता में से एक होने की पूजा करते हैं। इन विभिन्न देवी देवताओं की अभिव्यक्ति मूर्तियों, मंदिरों, गुरुओं, नदियों, पशुओं आदि के माध्यम से अवतरित हुई।

हिन्दू मानते हैं कि उनका स्थान वर्तमान जीवन में पिछले जन्म के कर्मों के द्वारा निर्धारित होते हैं, इसलिए हिन्दू धर्म इस जन्म में पीड़ा और बुराई का एक संभावित विवरण प्रदान करता है। यदि एक मनुष्य का व्यवहार पहले बुरा था, तो वे इस जीवन में अनुभव जबरदस्त कठिनाइयों का औचित्य साबित कर सकते हैं। दर्द, बीमारी, गरीबी या आपदा जैसे कि बाढ़ एक व्यक्ति के लिए उचित है क्योंकि पिछले जन्म के उसके बुरे कर्म उसके लिए जिम्मेदार हैं।

एक हिन्दू का लक्ष्य कर्म के नियम से, बार – बार जन्म लेने के चक्र से मुक्त होना है। उनके लिए केवल आत्मा प्रमुख है जो एक दिन पुनर्जन्म के चक्र से मुक्त होती है और शांति से रह पाती है।

हिन्दू धर्म आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को कार्यप्रणाली के चयन की पूर्ण स्वतंत्रता देता है। कर्म के चक्र से मुक्त होने के तीन संभावित मार्ग हैं – 1. किसी भी हिन्दू देवी देवता पर निष्ठापूर्वक समर्पण 2.ध्यान द्वारा ईश्वर से एकाकार तथा ज्ञान का अर्जन --------- इसका एहसास करना कि जीवन की घटनाएँ वास्तविक नहीं हैं, मैं का भाव एक भ्रम है, केवल ब्राह्मण ही वास्तविक है। 3. सभी धार्मिक समारोह और संस्कारों के प्रति श्रद्धा रखना।

नए युग का धर्म और उसकी धारणा

नया युग मनुष्य की शक्ति और उसकी दिव्यता के विकास पर जोर देता है। जब ईश्वर की बात आती है तब नए युग को माननेवाले सर्वोत्कृष्ट, व्यक्तिगत ईश्वर जिसने यह बह्मांड बनाया है, उसकी बात नहीं करते बल्कि वे उस उच्चतर चेतना की बात करते हैं जो सबके भीतर है। नए युग का मनुष्य अपने आप को ईश्वर , ब्रह्मांड मानता है। जो कुछ मनुष्य देखता है, सुनता है, अनुभव करता है या कल्पना करता है, उसे दिव्य समझा जाता है।

अत्यधिक उदार, नया युग अपने आप को आध्यात्मिक परम्पराओं के संग्रह के रूप में प्रस्तुत करता है। वह कई देवी देवताओं को हिन्दू धर्म की तरह स्वीकार करता है। पृथ्वी को सभी आध्यात्मिकता का स्त्रोत माना जाता है। उसकी अपनी बुद्धि, भावनाएँ और देवता हैं। पर सबसे अलग स्व या स्वतः है। स्व ही प्रणेता, नियंत्रक और सबका ईश्वर है। व्यक्ति जो कुछ भी निर्धारित करता है उसके अलावा बाहर कोई सच्चाई नहीं है।

नया युग विस्तृत पूर्वी रहस्यवाद और आध्यात्मिकता की सरणी, तात्विक और मानसिक तकनीक जैसे – साँस लेने का अभ्यास, जप, ढोल, ध्यान ---- चेतना विकसित करने के लिए और स्वयं के देवत्व के विकास के लिए हमें सिखाता है।

व्यक्ति कुछ भी नकारात्मकता के भाव का अनुभव करता है जैसे – विफलता, उदासी, क्रोध, स्वार्थ, चोट आदि तो उसे एक भ्रम माना जाता है। अपने ऊपर विश्वास करना पूर्णतः अपने ऊपर शासन करना है। उनके जीवन में कुछ भी गलत, नकारात्मक, या दर्दनाक नहीं है। फलतः व्यक्ति उस हद तक आध्यात्मिकता का विकास कर लेता है कि उसका कोई उद्देश्य या बाहरी वास्तविकता नहीं रहती। व्यक्ति, परमेश्वर बनकर अपनी वास्तविकता खुद रचता है।

बौद्ध धर्म और उसकी धारणा

बौद्ध धर्म को माननेवाले किसी भी ईश्वर को नहीं मानते हैं। बौद्ध धर्म को न माननेवाले सोचते हैं कि बौद्ध धर्म के अनुयायी बुद्ध की पूजा करते हैं। हालांकि बुद्ध ( सिद्धार्थ गौतम ) ने कभी ईश्वर होने का दावा नहीं किया, पर बौद्ध धर्म के माननेवालों ने यह माना कि बुद्ध ने निर्वाण प्राप्त किया है जिसे वे भी प्राप्त करना चाहते हैं। मोक्ष ही हमें जीवन मरण के चक्र से मुक्त करता है। वे मानते हैं कि मनुष्य को कई बार जन्म लेना पड़ता है जो दुख का कारण है। बौद्ध धर्म का अनुयायी इन पुनर्जन्मों से मुक्त होना चाहता है। अतः बौद्धों का मानना है कि तृष्णा, घृणा और भ्रम ही पुनर्जन्म के कारण हैं। अतः एक बौद्ध का लक्ष्य मनुष्य के ह्रदय को शुद्ध करना है ताकि वह कामुक इच्छाओं की तड़प को और अपने आप से लगाव को दूर कर सके।

बौद्ध धार्मिक सिद्धान्तों की एक सूचि और समर्पित ध्यान का अनुकरण करते हैं। जब एक बौद्ध भिक्षुक ध्यान में बैठता है तो वह प्रार्थना करने या ईश्वर पर ध्यान देने जैसा नहीं है, बल्कि स्वयं को अनुशासित करने जैसा है। ध्यान के अभ्यास से मनुष्य निर्वाण --- ( इच्छाओं की अग्नि को बाहर निकालना ) प्राप्त कर सकता है।

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बौद्ध धर्म हमें वह देता है जो सभी प्रमुख धर्म हमें देते हैं : अनुशासन, जीवन मूल्य, हिदायतें, जिसका अनुसरण करके मनुष्य जीवन जीना चाहता है।

इस्लाम धर्म और उसकी धारणा

मुसलमान मानते हैं कि एक सर्वशक्तिमान ईश्वर है जिसका नाम अल्लाह है जो मानव जाति से श्रेष्ठ और सर्वोत्कृष्ट है। अल्लाह को ब्रह्मांड का रचयिता माना जाता है और सभी अच्छाइयों और बुराइयों का स्त्रोत माना जाता है। जो कुछ भी घटित होता है वह अल्लाह की इच्छा से होता है। वह सर्वशक्तिमान और कठोर न्यायकर्ता है जो उन अनुयायियों के प्रति दयालु है जिन्होंने जीवन में पर्याप्त अच्छे काम किए हैं और धर्म के प्रति निष्ठा दिखाई है। अल्लाह के अनुयायी का संबंध उसके साथ उसके नौकर जैसा है।

हालांकि मुसलमान कई पैगंबरों को मानते हैं पर मोहम्मद को अंतिम पैगंबर माना जाता है। उनके कहे शब्द मुसलमानों के लिए आदेश हैं। मुसलमान होने के लिए उन्हें पाँच धार्मिक कर्तव्य निभाने पड़ते हैं। 1. अल्लाह और मोहम्मद के बारे में एक धार्मिक मत को दोहराना 2. अरबी में कही गई खास प्रार्थना दिन में पाँच बार बोलना 3. जरूरतमंद को उसकी जरूरत के अनुसार देना 4. हर साल में एक महीना धूम्रपान, शराब, सेक्स और अन्न सूर्योदय से सूर्यास्त तक ग्रहण न करना 5. अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार तीर्थस्थान मक्का पर जाकर इबादत करना। इन कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाने के आधार पर मरने पर एक मुसलमान जन्नत में प्रवेश करता है। अगर नहीं, तो उसे दोजख में यातना भोगनी पड़ती है।

बहुत से लोग ईश्वर के बारे में जैसा चाहते हैं इस्लाम उससे मिलता जुलता है। इस्लाम बताता है कि एक सर्वोच्च ईश्वर है, जो अच्छे कर्मों और नियमित धार्मिक रिवाजों से पूजा जाता है। मृत्यु के बाद एक व्यक्ति को धार्मिक निष्ठा के आधार पर पुरस्कार या दंड मिलता है। मुसलमान यह मानते हैं कि अल्लाह के लिए जीवन देने से मनुष्य अवश्य ही स्वर्ग का अधिकारी बनता है।

ईसाई धर्म और उसकी धारणा

ईसाई एक प्रेम करनेवाले परमेश्वर पर विश्वास करते हैं जिसने अपने आप को सबके सामने प्रकट किया और उसे इस जीवन में व्यक्तिगत रूप से जाना जा सकता है। ईसामसीह के साथ व्यक्ति का ध्यान धार्मिक रीतियों पर या अच्छे कर्म करने पर ही नहीं रहता बल्कि उनके साथ एक रिश्ता कायम कर उन्हें और अच्छी तरह जानकर आनन्द अनुभव करने पर रहता है।

केवल उनके शिक्षण पर ही नहीं, बल्कि ईसामसीह पर विश्वास करके एक ईसाई को जीवन अर्थपूर्ण लगता है और खुशी मिलती है। इस धरती पर अपने जीवनकाल में ईसा ने अपने आप को एक ईश्वर की तरफ इशारा करते हुए एक पैगंबर या प्रबोधन का शिक्षक नहीं बताया, बल्कि ईसा ने अपने आप को मानव रूप में ईश्वर बताया। उन्होंने चमत्कार दिखाए, अपने पापों के लिए लोगों को क्षमा किया और कहा कि जो कोई भी उनपर विश्वास करता है उसे अनन्त जीवन मिलता है। उन्होंने ऐसे विवरण दिए, “ जगत की ज्योति मैं हूं; जो मेरे पीछे हो लेगा, वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।“1

ईसाई बाइबल को मानवता के लिए ईश्वर का लिखा संदेश मानते हैं। ईसा के जीवन और उनके चमत्कारों के ऐतिहासिक अभिलेख के अलावा बाइबल हमें परमेश्वर के व्यक्तित्व, उसके प्रेम और सच्चाई के बारे में बताती है। वह यह भी बताती है कि हम किस प्रकार उससे एक रिश्ता बना सकते हैं।

जीवन में कैसी भी परिस्थिति का सामना जब एक ईसाई कर रहा होता है तब बाइबल उसे सिखाती है कि वे विश्वास सहित एक ज्ञानी और सर्वशक्तिमान ईश्वर का सहारा पा सकते हैं जो उनसे बहुत प्यार करता है। वे विश्वास करते हैं कि ईश्वर उनकी प्रार्थनाओं का उत्तर देता है और जब वे ईश्वर को मान देने के लिए जीते हैं तब जीवन अर्थपूर्ण बन जाता है।

ये प्रमुख धर्म विशिष्ट कैसे हैं ?

जब धर्मों की प्रमुख धारणा प्रणाली को देखा जाए तथा ईश्वर के प्रति उनके दृष्टिकोण पर एक दृष्टि डाली जाए तो हम उनमें काफी अंतर पाते हैं –

  • हिन्दू कई तरह के देवी देवताओं पर विश्वास करते हैं।
  • बौद्ध कहते हैं कि कोई ईश्वर नहीं है।
  • नए युग को माननेवालों के अनुसार वे ही ईश्वर हैं।
  • मुसलमान एक शक्तिशाली पर अनजान ईश्वर पर विश्वास करते हैं।
  • ईसाई वैसे ईश्वर पर विश्वास करते हैं जो प्रेम करनेवाला है और उस तक आसानी से पहुँचा जा सकता है।

क्या सारे धर्म एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं ? इसपर विचार कीजिए। नये युग के शिक्षकों के अनुसार सभी को ब्रह्मांडीय चेतना के स्तर पर मध्य में आना चाहिए,पर इसके लिए इस्लाम को अपने एक ईश्वर का मत छोड़ना होगा, हिन्दुओं को अपने अनेक देवी देवताओं को छोड़ना होगा और बौद्धों को यह मानना होगा कि एक ईश्वर है।

संसार के प्रमुख धर्म ( हिन्दूधर्म, बौद्धधर्म, इस्लाम, ईसाईधर्म और नया युग ( न्यु एरा ) सभी अद्वितीय हैं। इनमें एक मानता है कि एक प्रेम करनेवाला, व्यक्तिगत ईश्वर है जिसे अभी इसी जीवन में जाना जा सकता है। ईसामसीह ने हमें ऐसे ईश्वर के बारे में बताया जो हमारे साथ अपने रिश्ते का स्वागत करता है। वह हमारे पक्ष में एक ढाढ़स बँधानेवाले, सलाह देनेवाले और सर्वशक्तिमान ईश्वर के रूप में आना चाहता है जो हमसे प्रेम करता है।

हिन्दू धर्म में अपने कर्मों से मुक्त होने के लिए मनुष्य को खुद प्रयास करना पड़ता है। नए युग में मनुष्य अपनी दिव्यता के लिए कर्म करता है। बौद्ध धर्म में मनुष्य को अपनी इच्छाओं से मुक्त होने के लिए खुद खोज करनी पड़ती है। इस्लाम में मनुष्य धार्मिक नियम का पालन करता है ताकि मृत्यु के बाद उसे जन्नत की प्राप्ति हो। ईसा के शिक्षण में आप एक व्यक्तिगत ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत रिश्ता या संबंध देखते हैं – एक रिश्ता जो अगले जन्म तक चलता है।

क्या एक मनुष्य इस जीवन में खुद को ईश्वर के साथ जोड़ सकता है ?

इसका उत्तर है, जी हाँ। आप केवल ईश्वर से जुड़ ही नहीं सकते बल्कि ईश्वर आपको पूरी तरह स्वीकार करता है और प्रेम करता है।

संसार के बहुत से धर्मों ने मनुष्य को अपने आप आध्यात्मिक पूर्णता को प्राप्त करने के लिए भूखा मरने के लिए छोड़ दिया।

उदाहरणस्वरूप, बुद्ध ने कभी पापरहित होने का दावा नहीं किया। मोहम्मद ने भी स्वीकार किया कि उसे क्षमा की आवश्यकता है। “दूसरे पैगंबर, गुरू या शिक्षक कितने भी ज्ञानी, मेधावी या प्रमादकारी क्यों न हो, उनके पास यह जानने के लिए कि वे भी हम सबों की तरह अधूरे हैं, प्रत्युत्पन्नमतिस्व था।”2

ईसामसीह ने कभी भी व्यक्तिगत पाप नहीं किया, बल्कि उन्होंने लोगों को उनके पापों के लिए क्षमा किया और वे चाहते थे कि वे हमारे पापों के लिए भी हमें क्षमा करें। हम सभी अपनी गलतियों को जानते हैं, हमारे जीवन का कोई ऐसा क्षेत्र जिसके बारे में लोग बुरा सोचते हैं, वह क्षेत्र जो हम खुद चाहते हैं कि हमारे जीवन में न हो जैसे – बुरा स्वभाव, गंदगी, घृणात्मक शब्द आदि। ईश्वर हमसे प्रेम करता है पर हमारे पापों से घृणा करता है और उसने हमसे कहा कि पाप का फल ईश्वर से अलगाव है। पर ईश्वर ने हमें क्षमा पाने और उसे जानने का एक रास्ता दिया है। ईसा, ईश्वर का पुत्र, मानव के रूप में ईश्वर ने हमारे सारे पापों को अपने ऊपर ले लिया, शूली पर चढ़े और खुशी से हमारे लिए मरे। बाइबल कहती है,” हम ने प्रेम इसी से जाना कि उस ने हमारे लिये अपने प्राण दे दिए ”3

ईश्वर हमें पूरी क्षमा प्रदान करते हैं क्योंकि ईसा हमारे लिए मरे। इसका अर्थ है हमारे सभी पापों ---- भूत, वर्तमान और भविष्य के लिए क्षमा। ईश्वर ने सभी का भुगतान किया। ईश्वर जिसने यह ब्रह्मांड बनाया, हमसे प्रेम करता है और हमारे साथ एक रिश्ता रखना चाहता है। “ जो प्रेम परमेश्वर हम से रखता है, वह इस से प्रगट हुआ कि परमेश्वर ने अपने इकलौते पुत्र को जगत में भेजा है कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं। ”4

ईसा के द्वारा, ईश्वर हमें अपने पापों और दोषों से सच्ची स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। वे इस आशा में व्यक्ति की असफलता का भार उसके कंधों पर नहीं छोड़ते कि कल वे एक बेहतर इंसान बनेंगे। ईसा में, ईश्वर मानवता के पास पहुँच गए हैं। वे हमें उन्हें जानने का एक रास्ता देते हैं। “ क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।”5

ईश्वर चाहता है हम उसे जानें

ईश्वर ने हमें रचा ताकि हम उनके साथ एक रिश्ते में रह सकें। ईसा ने कहा,” जीवन की रोटी मैं हूं: जो मेरे पास आएगा वह कभी भूखा न होगा और जो मुझ पर विश्वास करेगा, वह कभी प्यासा न होगा।”6 ईसा ने लोगों को केवल अपनी शिक्षा को मानने के लिए नहीं बुलाया बल्कि उनका अनुसरण करने के लिए बुलाया। उन्होंने कहा, “ मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं। ”7 सच्चाई का दावा करने के लिए, ईसा उन पैगंबरों और शिक्षकों से भी आगे गए जो कह रहे थे कि वे सच बोल रहे हैं।8

ईसा ने अपने आप को ईश्वर के बराबर बताया और उसका सबूत भी दिय़ा। ईसा ने कहा कि उन्हें शूली पर चढ़ाया जाएगा और उनकी मृत्यु के तीन दिन बाद, वे फिर से जीवित हो जाएँगे। उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि भविष्य में वे कभी अवतार लेंगे। ( किसे पता यदि वे सच में हुए हों ? ) मृत्यु के तीसरे दिन ईसा की कब्र खाली मिली और बहुत से लोगों ने कहा कि उन्होंने ईसा को जीवित देखा है। वे अब हमें अनन्त जीवन देने का वादा करते हैं।

संसार के बहुत से धर्मों से अलग

बहुत से धर्म मनुष्य के आध्यात्मिक प्रयास पर बल देते हैं। ईसामसीह के साथ यह, आपके और ईश्वर के बीच दो तरफी बातचीत है। वे अपने पास आने के लिए आपका स्वागत करते हैं। “ जितने उसको सच्चाई से पुकारते हें; उन सबों के वह निकट रहता है। ”9 आप ईश्वर से संचार कर सकते हैं जो आपकी प्रार्थनाओं का उत्तर देगा, आपको शांति और खुशी देगा, एक दिशा देगा, अपना प्रेम आपको दिखाएगा और आपका पूरा जीवन परिवर्तित कर देगा। ईसा ने कहा,” मैं इसलिये आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं।”10 इसका मतलब यह नहीं है कि आपका जीवन उत्तम हो जाएगा और कुछ समस्याएँ नहीं रहेंगी। इसका मतलब है कि जीवन के बीच में, आप उस ईश्वर से संबंध स्थापित कर सकेंगे जो आपके जीवन में शामिल होना चाहता है और जो आपके प्रति प्रेम में ईमानदार रहना चाहता है।

अपनी बेहतरी के लिए जो तरीके हैं जैसे अष्टांगिक मार्ग या पाँच स्तंभ, ध्यान, अच्छे कर्म या मूसा के दस आदेश, उनके लिए यह कोई वायदा नहीं है। ये तरीके स्पष्ट,परिभाषित, आध्यात्मिकता के लिए आसानी से अनुसरण किए जानेवाले मार्ग हैं। पर पूर्णता के लिए किए गए ये सभी प्रयास बोझ बन जाते हैं और परमात्मा से उनका संबंध फिर भी दूरी का ही रहता है।

हमारी आशा, नियमों और मापदंडों का पालन करने में नहीं है बल्कि हमें बचानेवाले परमात्मा को जानना है, जो पूरी तरह हमें स्वीकार करे क्योंकि हमारा उनपर विश्वास है और उन्होंने हमारे लिए बलिदान दिया है। धार्मिक प्रयास या अच्छे कामों से हम स्वर्ग में जगह प्राप्त नहीं करते। जब हम ईसामसीह के साथ एक रिश्ता शुरू करते हैं तो स्वर्ग हमारे लिए मुफ्त का उपहार है।

ईश्वर के साथ एक रिश्ते का आरंभ

आप ईश्वर के साथ एक रिश्ता अभी आरंभ कर सकते हैं। यह उतना ही सरल है जितना ईमानदारी से ईश्वर से अपने पापों के लिए क्षमा माँगना है और उन्हें अपने जीवन में आने के लिए आमंत्रित करना है।

ईसा ने कहा,” देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ। ”11 क्या आप ऐसे ईश्वर के साथ एक रिश्ता काय़म करना चाहते हैं जिसने आपकी रचना की और वह आपसे बहुत प्यार करता है ? आप इसी समय ऎसा कर सकते हैं, यदि यह आपकी हार्दिक इच्छा है। प्रभु मैं आपसे क्षमा चाहता हूँ और आपको इसी समय अपने हृदय में आने के लिए आमंत्रित करता हूँ। यीशु मेरे पापों के लिए मरने के लिए धन्यवाद। जैसा कि आपने कहा कि आप मेरे जीवन में आएँगे, उसके लिए आपको धन्यवाद।

बाइबल हमें बताती है,” जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार ददिया ”12 जब आप निष्ठा से ईश्वर को अपने जीवन में आने के लिए कहेंगे तो आपका ईश्वर से एक व्यक्तिगत रिश्ता शुरू हो जाएगा। वह इसी समय ईश्वर से मिलने के समान होगा और वह फलने फूलने में, उन्हें और अच्छी तरह जानने में, आपके प्रति उनके प्यार को समझने में, बुद्धिमानी से आपका मार्गदर्शन करने में वे आपकी सहायता करेंगे, ताकि जो भी निष्कर्ष आपको शांति देता है वह आप ले सकें। बाइबल के अंदर “जॉन” नामक पुस्तक है वह ईश्वर से रिश्ते के बारे में ज्यादा जानकारी देती है। हो सकता है आप अपने निश्चय के बारे में किसी और को बताना चाहें कि आपने ईसा को अपने जीवन में आने के लिए कहा है।

संसार के धर्मों में एक व्यक्ति का रिश्ता शिक्षण, विचार, रास्ते, रीतियों से रहता है। पर ईसा के द्वारा मनुष्य एक शक्तिमान और प्रेम करनेवाले ईश्वर से रिश्ता बना सकता है। आप उनसे बात कर सकते हैं और वे इस जीवन में आपका मार्गदर्शन करेंगे। वे केवल आपको मार्ग, दर्शन या धर्म नहीं बताएँगे, बल्कि वह आपसे खुद को परिचित कराएँगे, खुशी महसूस कराएँगे, जीवन की चुनौतियों के बीच अपने प्रेम के प्रति आत्मविश्वास पैदा करवाएँगे ,” देखो पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है, कि हम परमेश्वर की सन्तान कहलाए ”13

 मैंने यीशु को अपने जीवन में आने के लिए कहा (कुछ उपयोगी जानकारी इस प्रकार है) …
 हो सकता है कि मैं अपने जीवन में यीशु को बुलाना चाहूँ, कृपया मुझे इसके बारे में और समझाएँ…
 मेरा एक सवाल है …

फुटनोट: (1) यूहन्ना 8:12 (2) इरविन डब्लू) लुट्जर, क्राइस्ट अमंग अदर गॉड्स ( शिकागो मूडी प्रेस,1994), पृष्ठ 63 (3) 1यूहन्ना 3:16 (4) 1यूहन्ना 4:9 (5) यूहन्ना 3:16 (6) यूहन्ना 6:35 (7) यूहन्ना 14:6 (8) लुट्जर, पृष्ठ 106 (9) भजन संहिता 145:18 (10) यूहन्ना 10:10 (11) प्रकाशित वाक्य 3:20 (12) यूहन्ना 1:12 (13) 1 यूहन्ना 3:1